Project Panaah

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शिक्षा हमारे देश की संस्कृति में कभी बेचीं नहीं गयी लेकिन आधुनिक मानसिकता इतनी बीमार हो चली है कि यदि किसी विद्यालय की फीस कम हो तो हमारी बुद्धि उसे अच्छा विद्यालय मानने को तैयार नहीं होती ।

विद्या के इस उद्योगीकरण ने ना जाने कितने बच्चों को अच्छी शिक्षा से दूर कर दिया है । सामान्य विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षक और आवश्यक संसाधनों के अभाव में विद्यार्थी बन चुके इन बच्चों को शिक्षा के नाम पर अब उतना कुछ नहीं मिल पाता जो एक संपन्न परिवार में जन्म लेने वाले बच्चे को सहज में मिल जाता है ।

शिशु का जन्म यदि गरीब परिवार में हुआ है तो इसमें उस शिशु की कोई गलती तो है नहीं । तथा किसी की आर्थिक परिस्थिति उसकी योग्यता का मापक तो किसी भी युक्ति से नहीं हो सकती । अतः बच्चों के अभिभावकों की आर्थिक परिस्थिति यदि उनके शिशुओं की शिक्षा में बाधक बनती है तो ये हमारी संस्कृति, समाज, देश एवं सरकार की सेहत पर उठाया गया बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है ।

THE ABODE School of Dreams की पहल पनाह इसी बीमारी के इलाज का, इन्हीं अन-सुलझे प्रश्नों के उत्तर देने का एक लघु प्रयास है । हमारे लिए सभी बच्चे एक हैं – उनके परिवार की परिस्थिति, उनका धर्म, उनके अभिभावकों का औहदा - इन सबसे परे हम बच्चों को सिर्फ बच्चों के रूप में देखते हैं और इसलिए सारे ही बच्चों को समान शिक्षा प्राप्त हो, ये हमारा ध्येय है जिसके लिए हम सतत कार्यरत हैं ।

हमें हमारी सीमाएं तथा शक्ति ज्ञात है पर ये सोचकर मजबूर हो बैठे रहना कि यह कार्य असंभव है, ये हमें मंजूर नहीं । बिना प्रयास किये किसी भी लोक-हितकारी कार्य को असम्भवता का चोगा पहनाना अकर्मण्य लोगों की पहचान है जो कि हमारे आदर्शों के विपरीत है । अतः हमने ये नन्हा सा प्रयास-चक्र शुरु किया है जिससे हमें महती आशा है कि यह शीघ्र ही रफ़्तार पकड़ेगा क्योंकि अच्छाई को फैलते देर नहीं लगती ।

इस उपक्रम के चलते हम हमारे शिक्षक, विद्यार्थियों एवं कार्यकर्ताओं के साथ जरूरतमंद बच्चों से मिलकर उनकी उन सभी कमियों को पूरा करने की कोशिश करते हैं जो उनके विद्यार्थी जीवन में नहीं होनी चाहिए ।

आप भी यदि इस पुनीत प्रयास में जुड़ना चाहते हैं तो आपका अनन्त स्वागत है । यह विशद कार्य हमसे अकेले हो पाना संभव भी नहीं है ।

आइये, हम सभी मिलकर शिक्षा के धूमिल हो चले क्षेत्र को फिर से उज्ज्वल बनाएं ।

शुभे! सदा शिशु के स्वरुप में ईश्वर ही आते हैं ।
महापुरुष की ही जननी प्रत्येक जननी होती है;
किन्तु भविष्यत् को समेट अनुकूल बना लेने का
मिलता कहाँ सुयोग विश्व की सारी माताओं को?
तब भी, उनका श्रेय सुचरिते! अल्प नहीं, अद्भुत है ।”
- रामधारी सिंह दिनकर