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यशंकर प्रसाद की ये पंक्तियाँ मानो पिछले कुछ दशकों से चली आई शिक्षा पद्धति को आईना दिखाती-सी प्रतीत होती हैं:

“नियति चलाती कर्म-चक्र यह तृष्णा-जनित ममत्व-वासना
पाणि पादमय पंचभूत की यहाँ हो रही है उपासना
यहाँ सतत संघर्ष, विफलता कोलाहल का यहाँ राज है
अन्धकार में दौड़ लग रही मतवाला यह सब समाज है || ”

बदलते समय, आपसी होड़ और देखा-देखी ने हमें कभी ये सोचने का अवकाश ही नहीं दिया कि शिक्षा के नाम पर हम जिस अन्धकार में राज़ी-ख़ुशी अपने बच्चों को ढकेलते जा रहे हैं, उसका क्या कुछ प्रतिफल-परिणाम भी होगा जो हमें, उन्हें और देश को झेलना पड़ेगा?

शिक्षा वह नहीं हो सकती जो हमें उजाले से अंधकार की ओर ले जाये । एवं जिस शिक्षा का बुनियादी मकसद ही दासता हो, वह शिक्षा क्या सचमुच भविष्य को उन्नत बना पायेगी? - यह एक विचारणीय प्रश्न है जो अवश्य हमारे हृदय में उठना चाहिए ।

पिछले कुछ दशकों की शिक्षा का परिणाम आज की पीढ़ी में हम सभी देख सकते हैं, जो निराशाजनक है । ऐसा भी नहीं है कि आज विद्यालयों की कमी है किन्तु उनकी पर्याप्त उपस्थिति भी हमारे देश व समाज के गिरते नैतिकता के स्तर को क्यों नहीं संभाल पा रही है? – यह एक विचारणीय प्रश्न है और निश्चित ही शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता को दिखलाता है ।

जब पहले-पहल हमने विद्यालय खोलने का निश्चय किया तो दिल को चोट पहुँचाने वाली कुछ प्रतिक्रियाएँ, कुछ बुनियादी प्रश्न हमें प्राप्त हुए जिन्हें अपने ध्येय की पवित्रता के लिए आपसे साझा कर रहा हूँ :

१. क्या हम भी विद्या का सौदा करने वाले हैं?

“स्कूल में बहुत पैसा है” “Capital Investment का अच्छा option है” - ये विचार उसी समाज के हो सकते हैं जहाँ विद्यालय धन के उद्देश्य से खोले जाते रहे हों । इन विचारों से हमें एहसास हुआ कि सरस्वती अपनी गरिमा अब खो चुकी है और वह जीवन में ज्ञान का नहीं, धन का स्रोत बन चली है ।

हम विचार करें कि यदि स्कूल Maximum Returns के लिए खोला जाये तो स्कूल को किसी Company की तरह चलाना होगा । अब Company की अच्छी performance के लिए स्कूल को अच्छे Results देने होंगे । कैसे? बच्चों पर अनावश्यक दबाव, उनकी पीठ पर बड़े भारी बस्ते और उनकी नाज़ुक नाक पर एक मोटा सा चश्मा टांगकर । क्यों? ताकि एक Marksheet, जिसके अंक जीवन में कभी काम नहीं आयेंगे, के ज़रिये नादान अभिभावकों को यह झूठ दिखाया जा सके कि उनका बच्चा उन्नति की राह पर है । और वे ख़ुशी-ख़ुशी बड़ी भारी रकम (फ़ीस) देने को तत्पर हो जायेंगे ।

इस तरह कुछ लोगों का आर्थिक स्वार्थ एवं कुछ अभिभावकों की नासमझी, निर्दोष बच्चों से उनके अमूल्य बचपन का मूल्य लगा, उसे चुरा लेती है ।

THE ABODE SCHOOL OF DREAMS का सृजन आर्थिक स्वार्थों से नहीं किया गया है । विद्या अमूल्य है और शिक्षा प्रत्येक मानव का जन्म-सिद्ध अधिकार और हम शिक्षा के क्षेत्र में सेवा के पुनीत उद्देश्य को हृदय में लेकर उपस्थित हुए हैं ।

२. अच्छा स्कूल मतलब English Medium. आप संस्कृति के नाम पर अँग्रेजी का बहिष्कार तो नहीं करेंगे?

जमाना अँग्रेजी का है क्योंकि अँग्रेजी आज एक Global भाषा बन चली है । अँग्रेजी आज की आवश्यकता है । किन्तु इसका ये अर्थ कैसे हो गया कि हमारी मातृभाषा हीन है और अँग्रेजी उच्च? हमारी छोटी सोच ने हमारी ही भाषा के प्रति हममें हीन भावना भर दी है । आइये, पहले हम ये समझें कि मातृभाषा के मायने क्या होते हैं:

शिशु जिस परिवेश में पलता है, जो भाषा उसकी माँ बोलती है, उसका मस्तिष्क सहज ही उस भाषा को आत्मसात कर लेता है ।

“अपनी मातृभाषा में ही हम अपने सर्वश्रेष्ठ विचारों को जन्म दे पाते हैं ।”

हमारी मातृभाषा हिंदी पुनीत और उज्ज्वल है । संस्कृत भाषा को ‘देव-भाषा’ कहते हैं और हमारी मातृभाषा हिंदी संस्कृत से ही उद्गमित है, इसलिए हमारी अक्षरमाला संस्कृत की ही है । एक आश्चर्य जनक तथ्य ये है कि जो भी हिंदी भाषा बोल सकता है वह जगत की किसी भी भाषा को स्पष्टतया बोल सकता है क्योंकि हिंदी भाषा की अक्षर माला में सभी प्रकार के उच्चारण की ध्वनियाँ हैं । यह आश्चर्य सिर्फ देवभाषा संस्कृत से उद्गमित भाषाओं में ही संभव है ।

क्या आप जानते हैं कि आज एक विद्यार्थी जब स्कूल में आता है तो उसे सर्व-प्रथम क्या सिखाया जाता है? A B C D.... इस अँग्रेजी भाषा की अक्षरमाला से हमारे नन्हे भारतीय-भविष्य अपना जीवन शुरू करते हैं और हमें भ्रम हो उठता है कि कितना सुंदर भविष्य हम अपने बच्चों को दे रहे हैं । लेकिन हमारे ज़ेहन में पल रहे इस जहर का आइये थोड़ा हम शोधन करें । उदाहरण के तौर पर आप कुछ अँग्रेजी शब्द सोचिये जो ‘त’ से शुरू होते हों । आपको शायद ही कोई शब्द याद आये | अँग्रेजी भाषा हिंदी भाषा के समक्ष बहुत गरीब है क्योंकि उसमें सारी ध्वनियों का समावेश नहीं होता । लेकिन दुर्भाग्य-वश हमने अपने बच्चों को उनकी मातृभाषा से बहुत दूर कर दिया है ।

THE ABODE SCHOOL OF DREAMS मातृभाषा की अनिवार्यता और अँग्रेजी की आवश्यकता - दोनों को बखूबी समझता है और हमारा ये प्रयास है कि हमारे बच्चे बहु-भाषी होकर भी अपनी मातृ-भाषा, संस्कृति और मातृभूमि का स्वाभिमान न भूलें । हम शिक्षा को भाषा के दायरे में नहीं बाँटना चाहते । हमारा मानना है कि हमारा जीवन अँग्रेजी एवं तकनीकी में समाहित हो, इससे कहीं बेहतर है कि अँग्रेजी और तकनीकी हमारे जीवन में समाहित हो जाये |

३. आप धर्म विशेष से जुड़े हैं तो आप स्कूल में अपने धर्म को भी पढ़ायेंगे?

विभिन्न जाति और धर्मों का त्राता होने से कभी यह देश गौरवशाली माना जाता था । किन्तु हमारी संकीर्ण हो चली सोच के चलते अब यही गौरव इस देश का दुर्भाग्य लगने लगा है । किसी के धर्म और जाति का ख्याल अब हमें कुछ अच्छा नहीं सोचने देता ।

कहते हैं मनुष्य का हृदय उदार और मस्तिष्क विशाल तब बनता है जब उसने उन विषयों का अध्ययन किया हो जो जीवन में आवश्यक हैं । और उनमें से अपने अतीत का ज्ञान होना एक अति आवश्यक विषय है जो कि हमें उतनी दिलचस्पी और ईमानदारी से नहीं पढ़ाया गया ।

आइये, हम इतिहास ग्रंथों के आधार से समझें कि ये जाति-धर्म, जिनके पीछे हम मर-मिटने को तैयार हो जाते हैं, आखिर कैसे हमारे बन जाते हैं ।

हमारा और आपका धार्मिक इतिहास:

उपलब्ध इतिहास इस बारे में एकमत है कि विश्व के सबसे पुरातन मानव हमारे भारत देश में बसते थे और उन्हें द्रविड़ कहा जाता था । उनके लिए धर्म जीवनशैली एवं उच्च जीवन-मूल्यों के अनुपालन से बढ़कर और कुछ नहीं था और उनका ध्येय था अपने अस्तित्व (आत्मा) का पूर्ण विकास तथा उनके गुरु जंगलों में नग्न-वेश धारण कर आत्म-प्रसिद्धि के लिए ही अपने उत्कृष्ट आचरण व ज्ञान से तप-आराधना करते थे ।

फिर इस देश में आर्यों का आगमन हुआ । द्रविड़ लोग स्वभावतः शांत थे, और सहिष्णु भी । उन्होंने बाहर से आई इस नवीन जाति को स्वीकार लिया । आर्यों ने अपने धर्म का प्रचार इस तरह से किया कि ये देश आर्यों का देश कहा जाने लगा । फिर वैदिक युग आया और तत्पश्चात बौद्ध-युग भी ।

भारतवर्ष अपनी सम्पन्नता और समृद्धि लिए विश्व में सोने की चिड़िया बन चुका था और यहाँ के लोग मानव जाति के उच्चतम आदर्श । और इस कारण कुछ नैतिकता से शून्य लालची विदेशी मानव इस देश को लूटने निकल पड़े । उन्होंने प्रथम तो इस देश को लूटा, और फिर इस अहिंसक देश पर राज्य भी करने लगे । जब वे हमारे देश में राज्य करने आये, तो उनके पीछे उनका धर्म भी चला आया ।

सदियों की लूट के पश्चात भी भारत की संपत्ति अगाध थी | अतः इसे लूटने फ्रांसीसी और पुर्तगाली लोग भी आये और फिर ईस्ट इंडिया कंपनी के सहारे अँग्रेज भी यहाँ आ पहुँचे ठीक उसी रीति से – पहले लूटने और फिर राज्य करने । और साथ में अपना धर्म लाना ये भी नहीं भूले ।

इस तरह भारतवर्ष में सभी धर्म आ पहुँचे ।

इसमें विचारणीय बात ये है कि यदि हम संभावना देखें तो बहुत अधिक ये है कि शायद हममें से बहुत कुछ लोग पहले द्रविड़ रहे हों और फिर मजबूरी में या सहर्ष उन्हें अलग-अलग समयों में विभिन्न धर्म स्वीकार करने पड़े हों | धर्म स्वीकारने के वक़्त हमारे पूर्वजों के समक्ष क्या परिस्थिति रही होगी, हम नहीं जानते, पर इस इतिहास को समझ लेने के बाद हमारा मस्तिष्क एवं हृदय इतना विशाल अवश्य हो जाना चाहिये कि कुछ भी हो, हम सभी सर्व-प्रथम मनुष्य हैं और हमारा प्रथम धर्म मानवता है और हमारी प्रथम उपासना हमारा जीवन ही है ।

THE ABODE SCHOOL OF DREAMS मानवता को ही धर्म मानता है और इसी के उच्च आदर्शों के अनुपालन में ही अपने उद्देश्य की सफलता । सभी धर्म-जाति के मानव एक हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि हम सभी ने बहुत सी चादरें ओढ़ रखीं हैं और अब समय है उन भेद-भाव की चादरों के अन्दर बैठे मनुष्य को बाहर निकालने का, क्योंकि मात्र उस मनुष्य में ही धरती को स्वर्ग बनाने की क्षमता है ।

इन सभी प्रश्नों से हमें अपने इस उद्यम में आगे बढ़ने के लिए और बल मिला है और अब हम शिक्षा के क्षेत्र को पुनः स्वच्छ बनाने के प्रण के प्रति और जागृत हो चले हैं ।

THE ABODE SCHOOL OF DREAMS शिक्षा के गौरव को पुनः गरिमा देने का प्रथम नन्हा प्रयास है । स्वप्नों के इस विद्यालय की एक-एक ईंट मैंने खुद अपने सामने एक बच्चे को एवं उसके भविष्य की सारी संभावनाओं को ध्यान में रखकर लगवाई है, ताकि वह सांस्कृतिक, नैतिक, बौद्धिक, तार्किक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक – जीवन के किसी भी पक्ष में पीछे न रह पाए और ऐसा भी न हो कि जीवन जीने की कला सीखने की जल्दी में वह कहीं अपना अमूल्य बचपन ही न खो दे ।

बच्चों की परवरिश प्रकृति के हाथ होती है तो हमने प्रकृति को इस विद्यालय में समा लेने का प्रयास किया है । राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पाठ्यक्रम एवं शिक्षा-प्रणालियों को समझकर, बुजुर्गों तथा विज्ञों से परामर्श करके हमने बहुत शोध के बाद अपनी शिक्षा-प्रणाली एवं पाठ्यक्रम का सृजन किया है । इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया है कि जब सभी की जरूरतें अलग हैं, भाषा अलग है, सोच अलग है, आदतें अलग हैं फिर सभी को एक सी शिक्षा दी जाये ये कहाँ तक सही हो सकता है?

हमारा विश्वास है कि यदि शिक्षा के पवित्र आँगन में हम एक वृक्ष भी पल्लवित कर पाए तो यह हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी ।

आइये, THE ABODE SCHOOL OF DREAMS के जरिये आप और हम फिर से हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति को गौरवशाली बनाएँ ।

- मनोज जैन
Visionary & Founder
THE ABODE School of Dreams